ईमानदारी की जीत victory of honesty
बहुत सालो पहले की बात है, एक सुंदर गाँव था — "सज्जनपुर"। वहाँ के लोग बहुत ही सुशील, मेहनती और ईमानदार थे। उसी गाँव में एक 14 साल का लड़का रहता था – अंश।
अंश एक गरीब परिवार से था। उसके पिता लकड़ी काटने का काम करते थे और माँ लोगों के घरों में सफाई करती थीं। अंश पढ़ने में बहुत अच्छा था, लेकिन उसमे सबसे बड़ी बात थी – उसकी ईमानदारी।
वह कभी भी झूठ नहीं बोलता था, चोरी नहीं करता था वह हमेशा दूसरों की मदद करता था। उसके शिक्षक और गाँव के बुद्धिजीवी अक्सर कहा करते, "काश, हर बच्चा अंश के जैसा हो जाता।"
एक दिन गाँव में घोषणा हुई कि राज्य के राजा ने गाँव के बुद्धिमान बच्चों के लिए एक प्रतियोगिता रखी है। जो बच्चा सबसे बुद्धिमान और उचित साबित होगा, उसे राजमहल में शिक्षा दी जाएगी और भविष्य में राज्य का मंत्री बनाया जाएगा।
गाँव में यह खबर आग की तरह फैल गई। सभी बच्चे उत्साहित थे। अंश भी बहुत खुश था ।
प्रतियोगिता तीन चरणों में थी:
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बुद्धिमत्ता की परीक्षा
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साहस की परीक्षा
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ईमानदारी की परीक्षा
बच्चों को गणित, और तर्क से जुड़े सवाल दिए गए। अंश ने सभी उत्तर ध्यानपूर्वक दिए। उसके उत्तर इतने सुगम और प्रभावशाली थे कि परीक्षक प्रभावित हो गए।
बच्चों को घने जंगल में भेजा गया, जहाँ उन्हें कुछ कठिन हालात से होकर गुजरना था – जैसे नदी पार करना, पेड़ पर चढ़ना, और जानवरों से नहीं डरना ।
जहाँ और बच्चे डर के मारे पीछे हट गए, अंश ने हिम्मत और समझदारी से सभी कामों को पूरा किया । उसने एक घायल खरगोश की भी सहायता की और उसे अपने साथ ले आया ।
परीक्षक बहुत खुश हुए।
अब सबसे कठिन और महत्वपूर्ण परीक्षा थी — ईमानदारी की परीक्षा।
इस बार कोई लिखित परीक्षा नहीं थी, कोई सवाल नहीं था। सभी बच्चों को एक-एक बीज दिया गया। और कहा गया, "इसे अपने घर ले जाकर एक महीने तक अच्छे से उगाओ। फिर जो सबसे अच्छा पौधा लाएगा, वह विजेता होगा।"
सभी बच्चे खुशी-खुशी बीज लेकर घर लौटे।
अंश ने बीज को अपने बगीचे में लगाया, प्रतिदिन उसमे पानी दिया, धूप लगा, गोबर की खाद डाली एक सप्ताह बीत गया, दो सप्ताह , तीन सप्ताह … और बीज मे कुछ भी हलचल नहीं हुआ ।
वह परेशान हो गया। उसके माता-पिता ने कहा, “बेटा, तूने मेहनत की है। जो भी है, उसे ही लेकर जाना।”
दूसरे बच्चों के घरों में सुंदर पौधे, हरे-भरे पेड़ और कुछ में तो फूल भी लग गए थे। पर अंश के गमले में कुछ भी नहीं था – बस मिट्टी थी ।
एक महीने के बाद सब बच्चे अपने गमले लेकर राजमहल पहुँचे। सभी ने अपने - अपने सुंदर पौधे दिखाए। किसी के पौधे में फूल थे,। अंश सबसे पीछे खड़ा था, अपने खाली गमले के साथ।
लोग हँसने लगे – “इसका तो बीज ही नहीं उगा! इतना भी नहीं कर पाया?”
महाराज आए, एक-एक बच्चे के गमले को देखा, सराहा। फिर उनकी नजर अंश पर पड़ी, जो सिर नीचे किए हुए खड़ा था।
उन्होंने कहा, “तुम क्यों उदास हो बेटा?”
अंश बोला, “महाराज, मैंने बीज को पानी दिया, धूप लगाई, पूरी देखभाल की… लेकिन यह नहीं उगा। मैंने कुछ और लगाना ठीक नहीं समझा।”
महाराज ज़ोर से हँसे और बोले, “बच्चो, यही है विजेता!”
सभी आश्चर्य चकित हो गए। एक बच्चा जिसके गमले में कुछ नहीं उगा, वह कैसे विजेता?
महाराज बोले, “मैंने जो बीज तुम्हें दिए थे, वे सभी उबले हुए बीज थे – उनमें से कोई भी अंकुरित नहीं हो सकता था। इसका मतलब यह है कि बाकी सभी बच्चों ने असली बीज फेंककर कोई और बीज बोया।”
“लेकिन केवल अंश ने ईमानदारी दिखाई। उसी ने वह गमला लाया जिसमें सच था – कि बीज नहीं उगा। और यही हमें एक सच्चे मंत्री में चाहिए – सच्चाई और ईमानदारी।”
महाराज ने अंश को गले लगाया और घोषणा की – "आज से यह बच्चा हमारे राजमहल में रहेगा। इसे उच्च शिक्षा दी जाएगी, और एक दिन यह हमारा प्रधान सलाहकार बनेगा।"
गाँव में खुशी की लहर दौड़ गई। अंश के माता-पिता की आँखों में आँसू थे – गर्व और खुशी के।
अंश से यह सीख मिलती है कि ईमानदारी भले ही कठिन रास्ता है , लेकिन उसकी मंज़िल सबसे सुंदर होती है।





